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इलाज बिना मां की मौत हुई तो डॉक्‍टरी की ठानी:  सरकारी कॉलेज लायक नंबर भी लाया; NEET पेपर लीक से रिक्‍शा चलाने को मजबूर

इलाज बिना मां की मौत हुई तो डॉक्‍टरी की ठानी: सरकारी कॉलेज लायक नंबर भी लाया; NEET पेपर लीक से रिक्‍शा चलाने को मजबूर

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56 मिनट पहले

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‘मम्‍मी की तबीयत अचानक रात को बिगड़ने लगी। उनके सीने में तेज दर्द उठ रहा था। मैं तब 17 साल का था। पापा के साथ उन्‍हें लेकर दिल्‍ली के जीबी पंत हॉस्पिटल पहुंचा। डॉक्‍टर ने बताया कि उनके दिल के एक वॉल्‍व में दिक्‍कत है। ऑपरेशन करना होगा।

ऑपरेशन की तारीख 9 महीने बाद की मिली। पापा सोच में पड़ गए। इतने दिन इंतजार नहीं कर सकते थे। उन्‍होंने मम्‍मी से कहा, ‘यहां ऑपरेशन की डेट 9 महीने बाद की है। हम प्राइवेट में इलाज करा लेंगे।’

मम्‍मी दर्द में होते हुए भी मुस्‍कुराईं। पापा का हाथ थामकर बोलीं, ‘जितने में मेरा इलाज होगा, उतने में तो एक बेटी की शादी कर दूंगी।’

पापा एक ठेला चलाकर हम 6 लोगों के परिवार का पेट पालते थे। प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज कराना कहां हमारे बस की बात थी। हम वापस लौट आए, लेकिन कुछ ही दिन बाद मम्‍मी की तबीयत एक बार फिर बिगड़ गई।

हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उन्‍हें पैरालिसिस का अटैक आ गया और शरीर का दाहिना हिस्‍सा पैरालाइज हो गया। डॉक्‍टर ने उनकी दवाइयों का डोज बढ़ा दिया, मगर कुछ महीने बाद ही मम्‍मी हम सबको छोड़कर चली गईं।

मैंने उसी दिन सोच लिया कि डॉक्‍टर बनूंगा और अपनी मां पूनम देवी के नाम से क्लिनिक खोलूंगा। इंजीनियर बनने का सपना छोड़ मैं मेडिकल की पढ़ाई में लग गया। 5 साल जीतोड़ मेहनत की, मगर अब NEET पेपर लीक की वजह से वो सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा।’

हरेंद्र बचपन में इंजीनियर बनना चाहते थे। गाड़‍ियां डिजाइन करना चाहते थे। मगर इलाज न मिलने से हुई मां की मौत ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।

हरेंद्र बचपन में इंजीनियर बनना चाहते थे। गाड़‍ियां डिजाइन करना चाहते थे। मगर इलाज न मिलने से हुई मां की मौत ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।

पेपर लीक की 5वीं कहानी के लिए हम यूपी के गाजियाबाद में रहने वाले हरेंद्र के परिवार से मिले। घर में पिता नरेश, बड़ी बहन रिंकी और छोटा भाई रवि है। ए‍क बेटी की शादी हो चुकी है।

पिता एक लकड़ी की दुकान पर ठेला चलाकर परिवार का गुजारा करते हैं। जब कोई लकड़ी खरीदता है तो वो डिलीवरी करते हैं। घर खर्च और पढ़ाई की फीस मैनेज करने के लिए हरेंद्र भी 17 साल की उम्र से गाजियाबाद के LIC दफ्तर में ऑफिस बॉय का काम कर रहे हैं।

हरेंद्र बताते हैं, ‘मम्‍मी के जाने के बाद पापा और मेरे बीच में ज्यादा बात नहीं होती। उनके सामने मैं अपनी बात रख नहीं पाता, लेकिन उन्होंने मेरे लिए कोई कमी नहीं छोड़ी। हमेशा किया है और अब तक भी कर रहे हैं।

हरेंद्र जिस गली में रहते हैं, वहां कूड़े और खुली नालियों की बदबू हवा में हरदम मौजूद रहती है।

हरेंद्र जिस गली में रहते हैं, वहां कूड़े और खुली नालियों की बदबू हवा में हरदम मौजूद रहती है।

मैंने 10वीं तक हिंदी मीडियम से पढ़ाई की थी। 11वीं में लैंग्वेज बैरियर के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था और मैं फेल हो गया। 11वीं में दूसरा साल था जब मम्मी की तबीयत खराब हो गई थी। मैं पढ़ाई के साथ मम्मी का ख्याल रखता था, मगर फिजिक्स के एग्जाम से 4 दिन पहले मम्मी की डेथ हो गई। तब भी मैंने पेपर दिया। माइंड बिल्कुल ब्लैंक हो गया था, लेकिन मेरा सपना था कि कैसे भी पास होना ही है। मैंने पढ़ाई को हमेशा सबसे आगे रखा। मैं जानता हूं कि पढ़ाई से ही अपनी और अपने परिवार की किस्‍मत बदल सकता हूं।’

हरेंद्र हमें किताबों का ढेर दिखाते हैं। टेबल के नीचे हाथ से लिखे नोट्स का अंबार लगा है। जूलॉजी की किताब दिखाकर कहते हैं, ‘NEET एग्जाम में इस साल मेरा 5वां अटेम्प्‍ट था। पिछले साल मेरा स्‍कोर 720 में से 442 था। मुझे BDS में सीट मिल रही थी, मगर मुझे MBBS चाहिए था। मैंने एक साल और तैयारी में लगाया और इस साल 548 स्‍कोर किया।

जब रिजल्‍ट देखा तो होश उड़ गए। AIR 1 पर ही 67 स्‍टूडेंट्स थे। पेपर में ऐसी गड़बड़ी हुई कि 548 स्‍कोर पर भी मेरी रैंक 1 लाख 40 हजार से ऊपर है। खबरों से पता चला कि बिहार, झारखंड में पेपर लीक कराने वालों की गिरफ्तारी हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि पटना और हजारीबाग में पर्चा लीक हुआ है। इसी की वजह से रैंक इन्‍फ्लेशन (ज्‍यादा स्‍कोर पर भी कम रैंक) हुआ है।

NEET UG पर पेपर लीक के आरोपों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई। कोर्ट ने माना कि पटना और हजारीबाग के सेंटर्स पर पर्चा लीक हुआ था।

NEET UG पर पेपर लीक के आरोपों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई। कोर्ट ने माना कि पटना और हजारीबाग के सेंटर्स पर पर्चा लीक हुआ था।

गड़बड़ी न होती तो मेरी रैंक 60-65 हजार होती। किसी सरकारी कॉलेज में एडमिशन मिल जाता। मगर 1 लाख 40 हजार की रैंक में प्राइवेट कॉलेज मिलेगा। प्राइवेट कॉलेज की फीस तो आप जानते ही हो। ऑल इंडिया काउंसलिंग में तो मैंने रजिस्‍ट्रेशन ही नहीं किया, पता था कि नहीं होगा।

पता नहीं क्‍यों लोग ताने देते हैं कि तुम्हारे पास तो SC सर्टिफिकेट है, तुम्हें तो आसानी से कॉलेज मिल जाएगा। कोई ये नहीं समझता कि इसके लिए भी कड़ी मेहनत लगती है।

पापा अकेले कमाने वाले हैं, उन पर कितना जोर डालूं। सबसे सस्‍ती कोचिंग में भी 4 हजार महीने का खर्च करना पड़ता है। 30 हजार कोचिंग में लगाकर भी नंबर नहीं ला पाया। मेरे थर्ड अटेम्प्‍ट में मॉपअप राउंड में सीट मिल सकती थी, मगर मुझे पता ही नहीं था कि उसके लिए दोबारा रजिस्ट्रेशन करना होता है। मेरे हाथ से कॉलेज चला गया। फोर्थ अटेम्प्ट में BDS मिला, लेकिन मुझे MBBS चाहिए था। पांचवे अटेम्‍प्‍ट में अब तक का बेस्‍ट स्‍कोर किया, लेकिन पेपर लीक ने डुबो दिया।’

हरेंद्र की बड़ी बहन रिंकी बचपन से पढ़ाई में तेज थीं। मगर घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि दो बच्‍चे पढ़ सकें। इसलिए उन्‍होंने भाई के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वो कहती हैं, ‘जो मेरे भाई का सपना है वही मेरा सपना है। मैं भी उसे डॉक्टर बनते देखना चाहती हूं।

घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि घर में दो बच्‍चे पढ़ सकें। इसलिए बड़ी बहन रिंकी ने भाई के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी।

घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि घर में दो बच्‍चे पढ़ सकें। इसलिए बड़ी बहन रिंकी ने भाई के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी।

मैं भी पढ़-लिखकर टीचर बनना चाहती थी, पर नहीं पढ़ पाई। हालांकि अब सिलाई का काम करके 200 से 250 कमा लेती हूं। जो मैं नहीं कर पाई वो मेरा भाई करेगा। मम्मी की डेथ के बाद लगा कि घर में एक डॉक्टर होना चाहिए। मम्मी दूसरों के घरों में बर्तन धोती थीं। जैसे-तैसे पैसे बचाकर हम सबको पढ़ाया, लेकिन कभी घर से बाहर काम के लिए नहीं भेजा। मैंने भी हमेशा खुद से पहले भाई को रखा। हमारी सारी उम्‍मीदें तो अब भाई से ही हैं।

हरेंद्र के पिता नरेश से मिलने हम उनकी दुकान पर पहुंचे। लकड़ी की कटाई और भीड़-भाड़ से गली में काफी शोर है। नरेश बताते हैं, ‘मेरी कोई फिक्स कमाई नहीं है। काम के हिसाब से पैसे मिलते हैं। कभी 100, कभी 200 और कभी खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है।

नरेश ठेले पर लकड़ियां ढोते हैं, जिससे होने वाली कमाई से बेटे की NEET कोचिंग की फीस भी देते हैं। उनपर दो बेटों और एक बेटी की जिम्‍मेदारी है।

नरेश ठेले पर लकड़ियां ढोते हैं, जिससे होने वाली कमाई से बेटे की NEET कोचिंग की फीस भी देते हैं। उनपर दो बेटों और एक बेटी की जिम्‍मेदारी है।

हम नहीं चाहते कि हमारा बेटा मेरी तरह मजदूरी करे। मेरा बेटा पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करे ताकि हमारा भी जीवन सही हो जाए। उसने पढ़ाई में बहुत मेहनत की। कहता है कि सरकारी कॉलेज से बिना फीस के पढ़कर डॉक्‍टर बन सकते हैं। बस नंबर अच्‍छे होने चाहिए। इस साल कहता है कि नंबर अच्‍छे हैं, लेकिन पेपर लीक हो गया था तो सरकारी कॉलेज मिले उतनी रैंक नहीं आ पाई।

अब उसे और नहीं पढ़ा पाएंगे। अब जो काम मिले वो करेगा। काम करके ही तो घर का काम चलेगा। उसने एक दिन रोकर कहा था कि बस इस साल तैयारी कर लेने दो। अब बस हो गया।’

हरेंद्र कहते हैं, ‘अब तो डॉक्‍टर बनने का सपना भी गया और जिंदगी के 5 साल भी गए। अब तो बस ऐसे ही मजदूरी वगैरह का काम करना पड़ेगा। बाकी 12वीं पास के लिए क्‍या ही नौकरियां हैं हमारे यहां।

मेरा सपना था कि डॉक्‍टर बनकर इलाज का एक हाइब्रिड मॉडल तैयार करूं। अभी सरकारी अस्‍पतालों में पैसा कम लगता है पर टाइम ज्‍यादा लगता है। वहीं प्राइवेट अस्‍पतालों में टाइम कम लगता है, लेकिन पैसा बहुत ज्‍यादा लगता है। मैं एक ऐसा मॉडल बनाना चाहता था जिसमें टाइम भी कम लगे और पैसा भी कम लगे।

वैसे मैं कभी रोता नहीं हूं, लेकिन इस साल मैंने बहुत रोकर घरवालों से आखिरी मौका मांगा था। मेरा ये एक ही सपना था मुझे MBBS करके कार्डियोलॉजिस्ट बनना है क्योंकि मेरी मां एक हार्ट पेशेंट थी और इलाज न मिलने से उनकी मौत हो गई। खैर अब तो… कुछ मजदूरी या ट्यूशन पढ़ाने का काम करना होगा या पापा की तरह मेहनत करूंगा।’ कहते हुए हरेंद्र की आंखें भर आती हैं।

हरेंद्र कहते हैं कि अब शायद उन्‍हें भी पिता की रिक्‍शा, ठेला चलाकर परिवार का गुजारा करना पड़ेगा।

हरेंद्र कहते हैं कि अब शायद उन्‍हें भी पिता की रिक्‍शा, ठेला चलाकर परिवार का गुजारा करना पड़ेगा।

हमारे देश में डॉक्‍टर बनने की राह मुश्किलों से भरी है। कुल 706 मेडिकल कॉलेजों में 1.09 लाख सीटें हैं। इनमें से लगभग 56 हजार सीटें सरकारी कॉलेजों में, जबकि 53 हजार प्राइवेट कॉलेजों में हैं। प्राइवेट कॉलेजों में MBBS की औसत फीस 80 लाख से 1 करोड़ है। ऐसे में गरीब तबके के बच्‍चों के लिए सरकारी कॉलेजों में एडमिशन की दौड़ और मुश्किल हो जाती है। पेपर लीक जैसी घटनाएं इन बच्‍चों को और गहरे और अंधे कुएं में धकेल देती हैं।

इस सीरीज के बाकी एपिसोड भी देखें…

एपिसोड 1 : डिग्रियां जलाकर फंदे से झूल गया बृजेश:7 साल तैयारी की, आखिरी कोशिश में पर्चा लीक; पेपर लीक से तबाह परिवार की क‍हानी

रात करीब 10 बजे का वक्त। यूपी में कन्‍नौज के भूड़पूरवा गांव में 27 साल का बृजेश बिना प्‍लास्‍टर वाले अपने कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजे की कुंडी लगा ली। उसके हाथ में B.Sc की डिग्री थी।

बृजेश ने जेब से माचिस निकाली और अपनी डिग्री में आग लगा दी। बृजेश ने सामने तख्त पर पड़ा अपनी बहन का दुपट्टा उठाया और उसे गले से लपेट लिया। जली हुई डिग्री की राख को पैरों से रौंदा और तख्त पर चढ़ गया। आखिर में दुपट्टे का दूसरा सिरा पंखा लटकाने के लिए लगे हुक से बांधकर खुद लटक गया। पूरी कहानी पढ़िए…

एपिसोड 2 : नारे लगाए तो हत्या की कोशिश के मुकदमे लादे : अब अदालतों के चक्कर काट रहे; नौकरी मिली भी तो पुलिस वेरिफिकेशन में फंसेंगे

‘पुलिस ने हमें दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटा। अटेम्प्ट टु मर्डर यानी हत्या की साजिश और दंगे भड़काने जैसे गंभीर मुकदमे लाद दिए। हम तो पेपर लीक की शिकायत कर रहे थे, खुद विक्टिम थे। उल्‍टा हमें ही सात दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया। अब परिवार ने भी मुंह मोड़ लिया है। एक तरफ सरकारी नौकरी की उम्र निकली जा रही है और दूसरी तरफ डर लगता है कि नौकरी मिल भी गई तो पुलिस वेरिफिकेशन में हमें फंसा देगी।

हर बार फॉर्म भरते समय ये बताना पड़ता है कि हम अपराधी नहीं हैं। हम पर लगे आरोप साबित नहीं हुए हैं। कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते-काटते हम तंग आ गए हैं। सोचा नहीं था कि पेपर लीक का विरोध करने पर पुलिस हमारे साथ ये सलूक करेगी। जिंदगी तबाह हो गई है।’ पूरी कहानी पढ़िए…

एपिसोड 3 : “सॉरी पापा, कुछ नहीं कर पाया, लव स्‍नेहा’ : लगातार दूसरा पेपर लीक होने पर कन्‍हैया ने जहर खाया; अब गांव में कोई तैयारी नहीं करता

जयपुर से 300 किलोमीटर दूर है हनुमानगढ़ का मंदरपुरा गांव। दिल्‍ली से करीब 16 घंटे सफर कर मैं यहां पहुंची। तंग गली के आखिर में बड़े से दरवाजे का एक मकान। मैं काफी देर दरवाजा खटखटाती रही, लेकिन कोई बाहर नहीं आया।

मैंने आसपास के लोगों से पूछा- ‘घर के अंदर लोग तो हैं न, फिर कोई दरवाजा क्यों नहीं खोल रहा।’

एक शख्स ने बताया- ‘घर के अंदर लोग तो हैं, लेकिन उनकी जिंदगी खालीपन से भर गई है। बहुत नाउम्मीद हो गए हैं। हाल ही में इन लोगों ने जवान बेटा खोया है। अब ये लोग किसी से बात नहीं करते, बेटे के बारे में तो बिल्कुल नहीं।’ पूरी कहानी पढ़िए…

एपिसोड 4 : अफसर बनना था, अब काम बताने में शर्म आती है:पढ़ाई के लिए खेत, भैंस सब बिक गए; पेपर लीक से 9 साल से भर्ती अटकी

आज से करीब 9 साल पहले। 2015 में ग्रेजुएशन पूरा करते ही मैंने झारखंड CGL एग्‍जाम दिया। जिस दिन इसका प्रीलिम्‍स रिजल्‍ट जारी होना था, मैं सुबह से ही नहा-धोकर गांव के इकलौते इंटरनेट कैफे पहुंच चुका था। रिजल्‍ट में अपना नाम देखा तो खुशी से उछल पड़ा, पर मुझे अंदाजा नहीं था कि ये मेरी खुशकिस्‍मती नहीं बदनसीबी थी, क्‍योंकि आज 9 साल बाद भी मेन्‍स का एग्‍जाम नहीं हो पाया है। इन 9 साल में 5 बार एग्‍जाम की डेट निकली। हर बार फीस भरी, पर हर बार एग्‍जाम कैंसिल हुआ।

इसी साल 28 जनवरी और 8 फरवरी को पेपर हुआ। मैं पेपर देकर कोडरमा से रांची लौट रहा था। दोस्‍तों के बीच पेपर पर डिस्‍कशन चल रहा था। मैंने यूं ही JSSC की वेबसाइट ओपन की। वेबसाइट पर नोटिस लगा था कि पेपर लीक हो गया है और परीक्षा कैंसिल हो गई है।’ पूरी कहानी पढ़िए…

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