जातिगत जनगणना
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
हर आदमी को गिनना ‘जनगणना’ है, लेकिन जातीय जन-गणना को राज्य सरकार जाति आधारित गणना या सर्वे बता रही थी। राज्य सरकार का यह दावा ही सबसे पहले पटना उच्च न्यायालय से ढेर हो गया। इसी सवाल पर याचिका दायर हुई थी, साथ में कई सवाल जुड़ते गए। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट और अंतत: हाईकोर्ट की शरण में केस आया और पटना हाईकोर्ट ने दो महीने की रोक लगा दी। सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद रोक के आदेश का तामिला भी करा दिया है। कोर्ट ने स्वीकार किया कि सरकार भले ही इसे जातीय गणना कह रही, लेकिन यह जनगणना से कुछ अलग नहीं है। दलीलों में जातियों के कोड से लेकर किन्नरों तक की बात हुई। ‘अमर उजाला’ ने Bihas Caste Census की प्रक्रिया से लेकर उठ रहे तमाम सवालों पर खबरों की सीरीज़ चलाई थी। कई खबरों पर सरकार ने तत्काल संज्ञान लेकर सुधार का रास्ता निकाला, लेकिन कई मुद्दों पर चुप्पी भी साध ली। जिन मुद्दों पर चुप्पी साधी गई, वही कोर्ट में दलीलों के रूप में सामने आया।
सरकारी भाषा नहीं, जातीय जन-गणना ही लिखा
जब हर जाति के हर आदमी की गणना हो रही थी तो इस जनगणना या जन-गणना कहने से पीछे हटने का उद्देश्य नहीं था। इसलिए, ‘अमर उजाला’ ने न केवल जनता को समझाने के लिए Bihas Caste Census सीरीज़ चलाई, बल्कि सरकारी भाषा से अलग वास्तविक रूप से इसे जाति आधारित जन-गणना या जातीय जनगणना लिखा। गुरुवार को हाईकोर्ट ने फैसले में इसे स्पष्ट भी किया है।
जातियों के कोड का ‘वायरल’ कन्फ्यूजन दूर किया
जातीय जनगणना शुरू होने के पहले जातियों की एक सूची खूब वायरल हुई थी, जबकि वह सूची उसी समय करीब 20 दिन पुरानी थी। ‘अमर उजाला’ के पास भी यह सूची थी, लेकिन यह जानकारी भी थी कि इसे अपडेट किया जा चुका है। अपडेट सूची में मारवाड़ी जाति नहीं थी। और भी कई बदलाव थे। ‘अमर उजाला’ ने वायरल हो रही सूची नहीं छापकर पुष्ट सूची प्रकाशित की। कन्फ्यूजन दूर करने वाली इस सूची को देखकर बिहारियों ने जातियों से संबंधित विसंगतियों को दूर कराने की अपील की।
श्रीवास्तव, लाला, लाल…कायस्थ से बाहर हो जाते
जातियों की पुष्ट सूची लाने के बाद बड़ा और चर्चित सवाल था कि प्रगणक को श्रीवास्तव, लाला या लाल जाति बताने वाले किस जाति में दर्ज होंगे? दरअसल, हिंदू दर्जी जाति के साथ कायस्थों की उपजाति श्रीवास्तव और टाइटल लाला और लाल को भी रखा गया था। ‘अमर उजाला’ ने मुद्दा उठाया तो सरकार ने प्रगणकों को सूचित किया कि श्रीवास्तव, लाल या लाला को हटा दिया जाए। सभी कायस्थ लिखेंगे और हिंदू दर्जी जाति के साथ श्रीवास्तव, लाल या लाला को नहीं रखा जाए।
भूमिहार ब्राह्मण ने बांटने की साजिश कहा था
जातीय जनगणना का मुखर विरोध आगे बढ़ रहा था। भूमिहार ब्राह्मण जाति के लोग लगातार विरोध कर रहे थे। भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच के प्रखर नेता आशुतोष कुमार, इतिहास विशेषज्ञ डॉ. आनंदवर्द्धन, राजनेता डॉ. विजयेश कुमार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रत्नेश चौधरी आदि ने आगे आकर कहा कि सरकार ने ‘भूमिहार’ नाम की नई जाति बनाई है। इतिहास से वर्तमान तक ब्राह्मणों की उपजाति भूमिहार ब्राह्मण है और सरकार ने ब्राह्मण से अलग करते हुए भूमिहार जाति बनाई है। सरकार ने इस मुद्दे का कोई समाधान नहीं निकाला। सरकार का दावा था कि उसके रिकॉर्ड में हर जगह भूमिहार ही है, भूमिहार ब्राह्मण नहीं। कोर्ट तक सरकार के खिलाफ ताकत के साथ लड़ने वाली यही जाति रही।
किन्नर को जाति बताया, उपाय दिया मगर स्वीकार्य नहीं
जातीय जन-गणना का खाका तैयार करने वालों ने कई तरह की गड़बड़ी की थी। यही कारण है कि किन्नर समाज ने इसपर सख्त आपत्ति ही नहीं की, बल्कि कोर्ट तक पीछा नहीं छोड़ा। पूरी दुनिया में किन्नरों को Third Gender के रूप में दर्ज किया जाता है, लेकिन बिहार की जातिगत जन-गणना की सूची में इसे एक जाति बताते हुए नंबर 22 का कोड निर्गत किया गया था। किन्नरों को भी ‘अमर उजाला’ ने आवाज दी। सरकार से जवाब पूछा गया। बाद में सरकार ने खुद प्रगणकों तक संदेश भेजा कि जो किन्नर अपनी जन्म की जाति लिखाना चाहें, वह वही लिखा सकते हैं। लेकिन, किन्नरों ने केस किया और जनहित याचिकाओं पर सुनवाई में इनका केस भी अटैच रखा गया।
शिक्षा विशेषज्ञता का कोड था, हालांकि इसपर भी सवाल
जाति आधारित जन-गणना के सभी बिंदुओं पर बातचीत में युवाओं ने कहा कि जातियों से ज्यादा उनके लिए शैक्षणिक योग्यता का कोड मायने रखता है। शैक्षणिक योग्यता वाले कोड को आमजन ने सही बताया था, इसलिए इसकी पूरी जानकारी ‘अमर उजाला’ ने सामने लायी। गुरुवार को कोर्ट ने जो फैसला दिया, उसमें जाति आधारित जन-गणना में इस तरह की जानकारी मांगे जाने के औचित्य पर सवाल उठा।
मारवाड़ी संशय में थे तो उन्हें दिखाया रास्ता
जातीय जन-गणना की पहली जातीय सूची में ‘मारवाड़ी’ जाति को कोड दिया गया था, लेकिन संशोधित सूची से यह नाम गायब था। ऐसे में मारवाड़ी समाज के लोग संशय में थे कि जाति क्या लिखाएंगे? ‘अमर उजाला’ ने मास्टर ट्रेनरों से जानकारी लेने के बाद मारवाड़ी समाज के अग्रणी नेताओं से बात कर यह निष्कर्ष निकाला कि मारवाड़ी संस्कृति के तहत रहे लोग बिहार में बनिया जाति के अंदर अग्रहरि वैश्य उपजाति लिखाएंगे।
सिख धर्म के लिए जाति का विकल्प बाद में आया
‘अमर उजाला’ ने सिख समुदाय के लोगों की आवाज उठाई, इनके लिए धर्म की सूची थी लेकिन जाति की नहीं। सिखों के बीच यही बात थी कि वह धर्म तो सिख लिखाएंगे, लेकिन जाति हिंदू वाली दर्ज कराएंगे। 15 अप्रैल से जातीय जन-गणना के लिए निकले प्रगणकों को बताया गया है कि सिख धर्म के लोग चाहें तो उनकी जाति ‘अन्य’ के रूप में दर्ज करा लें।
दो पते वालों के लिए क्या विकल्प, यह बताया गया
बिहार के शहरों में बड़ी आबादी गांवों से निकलकर आ बसे लोगों की है। भारी संख्या में लोगों का सवाल था कि वह क्या करें? ‘अमर उजाला’ ने जवाब बताया कि गणना एक ही जगह होगी और कहां कराना है, यह खुद तय करना होगा। बाद में बदलने का विकल्प नहीं मिलेगा। यह भी स्पष्ट किया गया कि दो जगह गणना कराने का प्रयास करेंगे तो डाटा मैच करने के कारण बाद में कराई गई गणना का रिकॉर्ड नहीं जाएगा।
घर का मुखिया भी बदलने की स्थिति रहेगी, बताया
लाखों लोगों का सवाल था कि वह बाहर हैं और इस बीच प्रगणक आ गए तो क्या करेंगे? ‘अमर उजाला’ ने मास्टर ट्रेनरों से बात कर स्पष्ट किया कि गणना के लिए 15 अप्रैल से पहुंचने वाले प्रगणक किसी को भी परिवार-प्रधान, यानी मुखिया मान लेंगे। जो भी परिवार की पूरी जानकारी देकर फॉर्म पर हस्ताक्षर करने में सक्षम होगा, वह मुखिया के रूप में दर्ज हो जाएगा। उसी के हिसाब से बाकी रिश्तेदारों की जानकारी भरी जाएगी। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान इसका भी एक पेच फंसा कि घर में नहीं मिलने वालों से वीडियो कॉल पर जानकारी लेना गलत है।
बंगाली कायस्थों के लिए कुछ विकल्प नहीं निकला
बंगाली कायस्थों को कायस्थ से अलग किए जाने पर भी सवाल उठा रहा था।सरकार अडिग रही कि बंगाली कायस्थ जाति पहले से अलग थी। उसे नहीं हटाया जाएगा, हालांकि खबर प्रकाशित होने के बाद प्रगणकों को निर्देश दिया गया कि बंगाली कायस्थ अगर अपनी मर्जी से कायस्थ लिखाएं तो उसे ही दर्ज किया जाए।
इन सवालों का भी सरकार ने यह जवाब दिया
‘अमर उजाला’ के सवालों की सूची में इन खबरों के अलावा भी चार सवाल थे। मोगल और जाट की गणना नहीं होगी? इस सवाल पर जवाब मिला कि मोगल और जाट को ‘अन्य’ में लिखा जाएगा। जिन लोगों का घर 5 साल से बंद है, उनका क्या होगा? इस सवाल का सीधा जवाब मिला कि ऐसे घरों की पहले फेज में ही गिनती नहीं हुई होगी। ऐसे जिन मकानों पर नंबर नहीं चढ़े, उनकी गणना नहीं होगी। अगर कोई गणना कराना चाहते हैं तो अपना आधार, वोटर आईकार्ड दिखा कर करवा सकते हैं। हाईकोर्ट इसपर भी सरकार के पक्ष से संतुष्ट नहीं हुआ।